See the world through my eyes….

Posts tagged “Gay Parade

Delhi Queer Parade

This slideshow requires JavaScript.


“ हाँ मैं समलैगिक हु। किसी दुसरे ग्रह से आय़ा प्राणी नही हुँ।“

दिल्लीः रविवार 28 नवंबर 2010 को दिल्ली में तीसरी क्वियर प्राइड परेड का आयोजन किया गया । यह परेड बाराखम्भा रोड से होते हुए जंतर-मंतर पर जा कर समाप्त हुई। रंग-बिरगें कपडे पहने हुए ,चेहरे पर विभिन्न प्रकार के नकाब लगाये हुए, बैंडबाजे की धुन और ढोलक की थाप पर नाचते हजारों लोगों ने इस परेड में हिस्सा लिया ।

इस परेड में समलैंगिको के अलावा उनके परिवार के सदस्य एव दोस्तों ने भी उनका सर्मथन करने के लिए क्वियर प्राइड परेड में हिस्सा लिया । यह क्वियर प्राइड मार्च यानि समलैंगिकों की सलाना परेड थी, जिसे दिल्ली क्वियर गर्व उत्सव 2010 का नाम दिया गया ।

गौरतलब है कि इंडियन पैनल कोड की धारा 377 के अनुसार पहले समलैंगिकता को एक अपराध माना जाता था, लेकिन 2 जुलाई 2009 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में इस नियम में बदलाव किया। उनके अनुसार निजी दायरे में रजामंदी के आधार पर वयस्क लोग समलैगिक यौन सबंध बनाते हैं तो इसे अपराध और गैरकानुनी नहीं माना जाएगा ।

गे ,कोठी ,लेस्बियन,क्वीन,डाइक,बाईसेक्शुअल ,हिजरा ,बुच,पंथी फेम्मे,फेयरी सभी क्वियर में आते है

समलैंगिकों के अधिकारों के लिए लडने वाले एक समाजिक कार्यकर्ता गौतम भान कहते है  इंडिया के अंदर अभी भी बहुत जगहों पर भेदभाव होता है लेकिन अब समाज बदल रहा है। हम चाहते है कि जिस तरह हमने संर्घष किया है। उस तरह से हमारी अगली पीढी को संर्घष ना करना पडे।

विमल भाई (नेशनल एलाईस पीपूल्स मूवमेन्ट) के कार्यकर्ता का नारा है  “बदल दो समानता की परिभाषा, मैं भी हूं यहां, मैं भी समलैंगिक हूं”

हिलोल दत्ता का कहना है “ लोग यहां खुले विचार से सर्मथन के लिए आते हैं।“  पिछले साल मैं यहां पर धरना प्रर्दशन के लिए आई थी लेकिन इस साल मैं यहां जश्न मनाने आई हूं। यह परेड निश्चित रुप से दिल्ली में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में क्वियर समुदाय में आत्मविश्वास पैदा करेगी ।

जयपुर का रहने वाला दिव्या (देव) कहता है  हमारे समाज मे गे को बुरी नजर से देखा जाता है। हम भी तो इस समाज का हिस्सा हैं। हमारी भी कुछ इच्छाएं हैं। समलैंगिको के साथ अत्याचार हो रहा हैं । पहले मैं नौकरी करता था लेकिन जब से मेरे दफ्तर में यह पता चला है कि मैं समलैंगिक हूं, मुझे नौकरी से निकाल दिया गया।

वही दूसरी तरफ सुषमा और सुरभी (बदला हुआ नाम) कहते है बडे शहर में फिर भी इसे स्वीकार कर लिया गया हैं। पर छोटे शहर या गांव  में हमें घृणा की दृष्टी से देखा जाता है। हमारे प्रति लोगों का व्यवहार अच्छा नहीं है।

हालांकि कुछ परिवारों ने अपने बच्चों को अपनाया भी है। सम्बध उन खुशनसीब समलैंगिको में से एक है। जिन्हें उनके परिवार ने स्वीकार किया है।  सम्बध के परिवार वाले उसका सर्मथन के लिए क्वियर परेड में भी आए हुए थे।

सम्बध के साथ इस परेड में शामिल उसकी दादी का कहना है मैने इसे इसलिए स्वीकार किया है, क्योकि इन्हें भी आजादी व समानता से जीने का अधिकार है।

हालैंड से आए समोर्ड कोक कहते है यहां लोग बडी तादाद में आए है। जिससे पता चलता है कि समाज के अन्दर बदलाव आ रहा है।

समलैगिंक भरत का कहना है जब मैं पहली बार परेड में आया था। मैने नकाब लगा कर आया था और बहुत रोया था । लेकिन इस बार मैं बिना नकाब के आया हूं। मैं चाहता हूं कि एक दिन ऐसा आए जब हम सब बिना नकाब के यहां आए।